THE BIKANER NEWS:-बीकानेर: बीकानेर में गंगाशहर का डागा भवन में महावीर इंटरकॉन्टिनेंटल सर्विस ऑर्गनाइजेशन (MISO) द्वारा एक बहुत बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमे पूरे देश से 1200 के करीब मूक बधिर बच्चे अपनी संस्थानों के साथ आए। आयोजकों भामाशाओ की तरफ से लाखो रुपये खर्च उनको हर तरह की सुख सुविधा देने और कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी व्यवस्थाएं अच्छे से करने के दावे किए गए।
कार्यकम के समापन सभी बच्चे और संस्थाए अपने शहर को लौट गई लेकिन पीछे छोड़ गए कई सवाल। बधिर कैन फाउंडेशन के महासचिव ने MISO के आयोजन को लेकर कुछ सवाल खड़े किए है ।
बधिर कैन फाउंडेशन के महासचिव प्रीति सोंनी ने बताया की उन्हें के “श्रवण और वाणी बाधित (बधिर) बच्चों के लिए कौशल विकास कार्यक्रम” में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था, जो 28 सितंबर से 2 अक्टूबर 2024 तक बीकानेर में आयोजित किया गया था। उन्होंने कहा कि मैं और मेरे साथ एक इंटरप्रेटर 30 सितंबर को बीकानेर पहुंचे। लेकिन, जो घटनाएँ वहाँ हुईं, उनसे मुझे अत्यधिक निराशा हुई।
इस कार्यक्रम में नियुक्त किए गए इंटरप्रेटर सांकेतिक भाषा में दक्ष नहीं थे। अधिकांश इंटरप्रेटर केवल 10% ही सांकेतिक भाषा जानते थे, और किसी के पास कोई प्रमाणपत्र भी नहीं था। इससे कार्यक्रम की प्रभावशीलता पर गंभीर असर पड़ा। कई छात्रों ने मुझसे कहा कि इंटरप्रेटर की अप्रशिक्षितता के कारण वे कुछ भी नहीं सीख पाए। छात्र खुद को असहाय महसूस कर रहे थे और शिक्षकों द्वारा डांटे जाने के डर से शिकायत भी नहीं कर पाए। उनकी आवाज़ों को दबा दिया गया।
इस कार्यक्रम में 1,200 बधिर छात्र मौजूद थे, लेकिन अपर्याप्त इंटरप्रेटेशन के कारण उन्हें वह ज्ञान और कौशल प्राप्त नहीं हो सका, जिसके लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था। यह स्थिति बधिर समुदाय के मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता और सम्मान की कमी पर गंभीर सवाल उठाती है। यह देखना अत्यंत दुखद है कि आज भी बधिर लोग सही पहुंच न होने के कारण संघर्ष कर रहे हैं।
प्रीति सोंनी ने बताया कि मैंने वीडियो रिकॉर्ड किए हैं, जो यह स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि मेहमान वक्ताओं के शब्दों का सांकेतिक भाषा में अनुवाद कितनी खराब तरीके से किया गया था। ये वीडियो इस बात का अटल प्रमाण हैं कि इंटरप्रेटर अपनी भूमिका में पूरी तरह असक्षम थे। यह असफलता न केवल कार्यक्रम के कौशल विकास उद्देश्य को प्रभावित करती है, बल्कि बधिर छात्रों के लिए पहुँच संबंधी समस्याओं को भी उजागर करती है।
इसके अलावा, मुझे MISO के आयोजकों द्वारा व्यक्तिगत रूप से भी अपमानित महसूस हुआ। कई बार पूछने के बावजूद मुझे मेरे व्याख्यान का समय नहीं बताया गया, जिससे मेरा समय बर्बाद हो गया। MISO ने मुझे एक अतिथि के रूप में आमंत्रित किया, लेकिन मुझे वह सम्मान और मान्यता नहीं दी गई जो एक विशेष अतिथि के रूप में मिलनी चाहिए थी। मैंने कई बार व्याख्यान का समय पूछा, लेकिन उनके पास कोई स्पष्ट समय-सारणी नहीं थी। यह बहुत ही अव्यवस्थित और गैर-पेशेवर तरीका था।
MISO दावा करता है कि उसे 23 वर्षों का अनुभव है, फिर भी बधिर समुदाय और उसके नेताओं के प्रति उसकी असंवेदनशीलता और अनुचित व्यवहार से यह स्पष्ट होता है कि उसके पास इस प्रकार के कार्यक्रमों को उचित तरीके से आयोजित करने की योग्यता का अभाव है। इतने वर्षों का अनुभव होने के बावजूद, वे इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए आवश्यक जागरूकता और योजना क्यों नहीं बना सके, यह समझ से परे है।
अब इन सवालों में कितनी सच्चाई है इसका निर्णय तो हम नही कर सकते लेकिन एक अंतरराष्ट्रीय संस्था जो लाखो रुपये सामाजिक कार्यक्रम के नाम पर लेती है भामाशाओ से फिर भी व्यवस्थाओं पर सवालिया निशान छोड़ जाती है….आयोजकों की तरफ से इसका क्या खंडन होता है उसका भी इंतजार रहेगा..