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कोलकात्ता

पीना तो दूर, नहाने लायक भी नहीं गंगा का पानी, सीवर से नहीं जुड़े ज्यादातर घर

कोलकाता खबर:- प्रदूषण का असर न केवल इंसान के स्वास्थय बल्कि पेयजल पर भी बुरी तरह पड़ा है। हालात इस कदर खराब हो गई है कि अब महानगर में प्रति 100 मिलीमीटर गंगाजल में 1.30 लाख कैलीफोर्म बैक्टीरिया पाए गए। पीने की बात तो दूर स्नान के लायक भी गंगा का पानी अब नहीं रहा। पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, बंगाल में फरक्का से गंगासागर तक कहीं भी गंगा का पानी नहाने लायक नहीं बचा है। मुर्शिदाबाद जिले के बहरमपुर (जहां से गंगा बंगाल में प्रवेश करती है) में 100 मिलीमीटर गंगाजल में 79,000 कैलीफोर्म बैक्टीरिया पाए गए।

ये है स्वास्थ्य मानक
स्वास्थ्य मानकों के मुताबिक पीने के लिए यह पारंपरिक ट्रीटमेंट बिना और संक्रमण-मुक्त किए जाने के बाद 50 कैलीफोर्म बैक्टीरिया या उससे कम होने चाहिए। नहाने के लिए 5,000 कैलीफोर्म बैक्टीरिया या उससे कम होना जरूरी है। कोलकाता के गार्डेनरीच में गंगाजल को सर्वाधिक प्रदूषित (1,30,000 कैलीफोर्म बैक्टीरिया) पाया गया। इसके बाद दक्षिणेश्वर में इसमें 1,10,000 कैलीफोर्म बैक्टीरिया पाए गए हैं।

बंगाल में महज 44 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
तीन दशक से अधिक समय से गंगा के संरक्षण की मुहिम में जुटे पर्यावरणविद सुभाष दत्ता ने कहा कि पूरे बंगाल में महज 44 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं, जबकि जरूरत 144 की है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में ज्यादातर का पूरी क्षमता पर इस्तेमाल नहीं हो रहा। बंगाल में ज्यादातर घर सीवेज सिस्टम से कनेक्ट नहीं हैं।

17 नदियों का भी पानी नहाने लायक नहीं
बंगाल में गंगा ही नहीं, महानंदा, तीस्ता, रूपनारायण, मयूराक्षी समेत 17 नदियों में किसी का भी पानी नहाने लायक नहीं है। गोंदलपाड़ा, हेङ्क्षस्टग्स, इंडिया समेत चार जूट मिलों के मालिक संजय काजडिय़ा के अनुसार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानदंडों का पालन करते हुए जूट मिल चलाते हैं। गोंदलपाड़ा जूट मिल में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से नियमों की अनदेखी पर समय-समय पर कार्रवाई की जाती है। जुलाई में विभिन्न नगर निकायों पर 20 करोड़ का जुर्माना लगाया गया था। बोर्ड ने गंभीर रूप से प्रदूषण फैला रहे 400 उद्योगों को चिन्हित किया है। इनमें से ज्यादातर गंगा किनारे हैं। गंगोत्री से गंगासागर तक 2,510 किलोमीटर यात्रा के दौरान गंगा में कई स्थानों पर कारखानों की गंदगी मिलती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड होते हुए बंगाल में सागर में विलीन होने से पहले गंगा इतनी मैली हो होती है कि पीना तो दूर नहाने लायक नहीं रहता इसका पानी

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