{"vars":{"id": "125777:4967"}}

बीकानेर हाईकोर्ट बेंच : न्याय का अधिकार बनाम क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा,
“यह मांग प्रतिष्ठा की नहीं, न्याय तक पहुँच की है।”:-नितिन चुरा

 
THE BIKANER NEWS:-बीकानेर बीकानेर में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना के प्रयास काफी समय से हो रहे है लेकिन सफलता अभी दूर! नितिन चुरा ने कहा को ये लड़ाई यह मांग प्रतिष्ठा की नहीं, न्याय तक पहुँच की है

 

राजस्थान के पश्चिमी हिस्से में न्याय की पहुँच हमेशा से एक कठिन चुनौती रही है। बीकानेर संभाग – जिसमें बीकानेर, चूरू, श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जैसे ज़िले आते हैं – यहाँ की आबादी लगभग 1.25 करोड़ से अधिक है। लेकिन इस पूरे संभाग के लिए राजस्थान हाईकोर्ट तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता जोधपुर है, जो कई जिलों से 300 से 450 किलोमीटर दूर है।

 

एक सामान्य किसान, मज़दूर या छोटे व्यापारी के लिए इतनी दूरी तय कर न्याय पाना न केवल समय और धन का सवाल है, बल्कि कई बार न्याय से ही वंचित होने का कारण बन जाता है। यही वजह है कि बीकानेर में हाईकोर्ट बेंच की मांग वर्षों से उठती रही है।

 

संघर्ष और नेतृत्व

 

बीकानेर बार के अधिवक्ताओं ने इस मुद्दे को हमेशा जीवित रखा। वरिष्ठ अधिवक्ता कुलदीप शर्मा और कमल नारायण पुरोहित , कु इंदर सिंह  , त्रिलोक नारायण पुरोहित , मीडिया प्रभारी  अनिल सोनी जैसे अनेक नाम  लंबे समय से इस आंदोलन का हिस्सा रहे, वहीं वर्तमान बार अध्यक्ष विवेक शर्मा ने हाल के वर्षों में इसे और अधिक मुखरता से आगे बढ़ाया।

राजनीतिक स्तर पर भी अब हालात अनुकूल हैं। बीकानेर के सांसद और देश के कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने इस विषय को लगातार संसद और सरकार में उठाया है। अब जब भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीकानेर आ रहे हैं, तो उम्मीदें और प्रबल हो गई हैं कि यह ऐतिहासिक मांग शायद अब निर्णायक चरण तक पहुँचे।

आँकड़ों की ज़ुबान

तथ्य और आंकड़े भी यही कहते हैं कि बीकानेर में बेंच आवश्यक है।

• बीकानेर संभाग से हर साल 18 से 20 हज़ार से अधिक केस सीधे जोधपुर हाईकोर्ट पहुँचते हैं।

• श्रीगंगानगर से जोधपुर की दूरी 460 किमी, हनुमानगढ़ से 430 किमी, चूरू से 350 किमी और बीकानेर से भी लगभग 250 किमी है।

यह केवल दूरी नहीं, बल्कि न्याय तक पहुँच का असमान अवसर है। अन्य राज्यों में भी इसी तर्क पर बेंच स्थापित हुई हैं – मध्यप्रदेश में इंदौर और ग्वालियर, महाराष्ट्र में नागपुर और औरंगाबाद, और उत्तरप्रदेश में लखनऊ।

जोधपुर बार का हड़ताल – सवालों के घेरे में

ऐसे समय में, जब बीकानेर बेंच की संभावना मात्र पर चर्चा शुरू हुई, जोधपुर बार का हड़ताल पर जाना एक गंभीर और दुखद कदम है।

क्या न्यायिक बेंच की स्थापना शहर की प्रतिष्ठा का विषय है?

क्या न्याय केवल एक केंद्र तक सीमित रहना चाहिए?

दरअसल, बीकानेर में बेंच की स्थापना जोधपुर के अधिकार को कम नहीं करेगी, बल्कि पश्चिमी राजस्थान के लाखों लोगों को राहत देगी। न्याय का उद्देश्य सुलभता है, न कि किसी शहर विशेष की श्रेष्ठता।

संवैधानिक दृष्टि

संविधान का अनुच्छेद 39A कहता है कि राज्य का कर्तव्य है सभी नागरिकों को न्याय तक समान अवसर और सुलभ पहुँच उपलब्ध कराना। लॉ कमीशन ने भी बार-बार सिफारिश की है कि जहाँ दूरी और मुकदमों की संख्या अधिक हो, वहाँ हाईकोर्ट बेंच बनाई जानी चाहिए। बीकानेर इस कसौटी पर पूरी तरह खरा उतरता है।

निष्कर्ष

बीकानेर हाईकोर्ट बेंच की मांग न क्षेत्रीय राजनीति है, न शहरों की प्रतिस्पर्धा। यह न्याय के बुनियादी अधिकार और लाखों लोगों की सुलभ पहुँच का प्रश्न है।

आज ज़रूरत इस बात की है कि न्यायपालिका, सरकार और बार – सभी इस विषय को सकारात्मक रूप से देखें। जोधपुर बार को चाहिए कि वह इसे अपने खिलाफ न माने, बल्कि राजस्थान के संतुलित विकास और न्याय तक समान अवसर के प्रयास के रूप में देखे।

यदि बीकानेर में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना होती है, तो यह केवल बीकानेर ही नहीं, बल्कि पूरे पश्चिमी राजस्थान के लिए न्याय की राह को सरल और सुलभ बनाने वाला ऐतिहासिक निर्णय होगा।

लेखक : नितिन चूरा ,अधिवक्ता – पिछले 8 वर्षों से बीकानेर में प्रैक्टिसरत