राजस्थान PCC चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा ने दिया इस्तीफा, ये रही वजह, विधानसभा में उनका ये रोले हुआ अब खत्म
जाने पूरा मामला
Rajasthan News: राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने राजस्थान विधानसभा की प्राक्कलन समिति 'खा' के सदस्य पद से अप्रत्याशित रूप से इस्तीफा दे दिया। डोटासरा ने अपने त्यागपत्र में विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के हालिया फैसलों पर सवाल उठाते हुए उन्हें संविधान की भावना के खिलाफ और पक्षपातपूर्ण बताया। सोशल मीडिया के जरिए अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के मंदिर में निष्पक्षता पर सवाल उठने पर चुप रहना जनादेश का अपमान है।
'X' पर किया इस्तीफे का ऐलान:
गोविंद सिंह डोटासरा ने X पर जानकारी साझा करते हुए कहा, "मैं राजस्थान विधानसभा की प्राक्कलन समिति 'खा' के सदस्य पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की निष्पक्षता सर्वोपरि होती है, लेकिन जब फैसले पद की गरिमा के विपरीत और पक्षपातपूर्ण नजर आते हैं तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए हानिकारक होता है।" डोटासरा ने कहा कि राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी जी के हालिया फैसले संविधान की मूल भावना के विरुद्ध कार्यों और पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण प्रवृत्ति को उजागर करते हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के मंदिर में निष्पक्षता पर सवाल उठने पर चुप रहना जनादेश का अपमान है। इसलिए हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं और मैं प्राक्कलन समिति के सदस्य पद से इस्तीफा देता हूं।
समितियां सत्ता पक्ष की रबर स्टैंप मात्र नहीं होतीं, संतुलित संवाद और निगरानी में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। कांग्रेस विधायक नरेंद्र बुढ़ानिया जी को हाल ही में विशेषाधिकार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, लेकिन 15 दिन में ही उन्हें हटा दिया गया। विधानसभा अध्यक्ष का यह रवैया चौंकाने वाला है, क्योंकि ऐसी समितियों के अध्यक्ष आमतौर पर कम से कम एक साल तक ही पद पर रहते हैं।
ऐसा पहली बार नहीं- डोटासरा
उन्होंने कहा कि पक्षपातपूर्ण फैसले देखने का यह पहला मामला नहीं है। हाल ही में हाईकोर्ट ने अंता से भाजपा विधायक कंवर लाल मीना की 3 साल की सजा को बरकरार रखा है। नियमों के अनुसार 2 साल से अधिक की सजा मिलने पर विधायक और सांसद स्वतः ही निलंबित हो जाते हैं। हालांकि विपक्ष द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को ज्ञापन सौंपे जाने के बाद भी कंवर लाल मीना की सदस्यता रद्द नहीं की गई। विधानसभा अध्यक्ष की यह मनमानी माननीय न्यायालय और संविधान की घोर अवहेलना है। उन्होंने कहा कि ऐसे कई निर्णय हैं जो विधानसभा अध्यक्ष पर दबाव और निष्पक्षता में काम करने पर सवाल खड़े करते हैं। माननीय अध्यक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वे संविधान की शपथ का पालन करें और कानूनी रूप से सही और न्यायसंगत निर्णय लें, जिससे कुर्सी के प्रति विश्वास मजबूत हो।