Vegetable Price Hike : इन सब्जियों पर मौसम की पड़ी मार, आसमान छू रहे है भाव, जानें नए रेट
गुणात्मक दृष्टि में बेहतर होने के कारण अचार के लिए राजगढ़ की कैरी लोगों की पहली पंसद रही हैं। कैरी की बढ़ती मांग के मध्यनजर लोगों ने आम के बाग लगाए थे और कस्बे सहित आसपास के गांवों में लगभग 30 बाग थे। इनमें से अधिकांश स्थानों को वर्तमान में बाग के नाम से ही जानते हैं, लेकिन वहां कैरी के पेड़ ही नहीं।
Vegetable Price Hike: राजस्थान के राजगढ़, अलवर सहित आसपास के क्षेत्रों में कैरी उत्पादन के क्षेत्र में विशेष पहचान बना चुका राजगढ़ कस्बा अब पहचान खोते जा रहा है। पेड़ों की अन्धाधुंध कटाई एवं मोटी रकम के लालच में जमीन की सौदेबाजी करने से क्षेत्र में बागों की संख्या कम रह गई।
कई बागों का नामों निशान मिट चुका तो कई मिटने के कगार पर है। बागों के स्थान पर कॉलोनियां विकसित हो रही हैं। यदि अवैध कॉलोनियों को नहीं रोका गया तो राजगढ़ से बाग शून्य हो जाएंगे।
गुणात्मक दृष्टि में बेहतर होने के कारण अचार के लिए राजगढ़ की कैरी लोगों की पहली पंसद रही हैं। कैरी की बढ़ती मांग के मध्यनजर लोगों ने आम के बाग लगाए थे और कस्बे सहित आसपास के गांवों में लगभग 30 बाग थे। इनमें से अधिकांश स्थानों को वर्तमान में बाग के नाम से ही जानते हैं, लेकिन वहां कैरी के पेड़ ही नहीं।
बागों की संख्या कम होने का नतीजा यह रहा कि क्षेत्र में कैरी का उत्पादन प्रति वर्ष घट रहा है। इसी कारण अब यहां से बाहर भेजी जाने वाली कैरी की मात्रा में भी बहुत कमी आ गई। ग्रामीणों का कहना है कि लगभग 40 वर्ष पूर्व राजगढ़ कस्बे के बागों में हरियाली से आच्छादित थे। जहां कैरी, आम के अलावा जामुन, खिरनी, बोसली सहित अन्य फल भारी तादाद में उत्पादित होते थे। समय के साथ बाग उजड़ गए। वर्तमान में कई बागों का सिर्फ नाम रह गया। वहां सघन आवासीय बस्तियां बस गई।
मौसम की मार से आहत किसान
असामान्य मौसम के चलते इस साल कैरी का आकार छोटा-बड़ा सा रहा । कैरियों के पेड़ों पर बगर (पोक) बड़ी मात्रा में आया, लेकिन तेज धूप, अंधड़ चलने के कारण पोक व कच्चे फल पेड़ों से झड़ गए। इससे बाग मालिक व ठेकेदारों को बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है। उदयाराम कोली, छोटे लाल कोली ने बताया कि बादल होने से बगर खिले नहीं, जिससे फल कम आया।
तेज अंधड़ के चलते कैरी के कच्चे फल झड़ गए। कोली ने बताया कि एक लाख 45 हजार रुपए के बाघोला बांध व गोठ गांव में दो बागों का एक वर्ष के लिए ठेका लिए था। करीब 50 प्रतिशत नुकसान उठाना पड़ रहा है। वैसे एक वर्ष छोड़कर दूसरे वर्ष कैरी का उत्पादन अच्छा होता है। कैरी का भाव अभी 20 से 25 रुपए प्रति किलो चल रहा है।
मोहनलाल कोली का कहना है उसने झूपड़ीन व बल्लूपुरा गांव में तीन स्थानों पर कैरी के पेड़ों का 62 हजार का ठेका लिया, लेकिन आठ पेड़ों में फल आए तथा पांच में फल ही नहीं आए। जिससे करीब 29 हजार का नुक़सान हो रहा है।
बाघोला के एक बाग के मालिक छोटे लाल मीना कहना है कि उसने बाग के करीब 25 पेड़ों का ठेका 64 हजार में दिया, लेकिन भीषण गर्मी के चलते पेड़ों की टहनियां सूख गई। कैरी के फल में दाग लग गए। यदि बारिश हो जाती है तो अच्छा मुनाफा हो रहा है।