Movie prime
दीपावली पर्व 2025: 20 अक्टूबर को लक्ष्मीपूजन का शास्त्रसम्मत आधार – ज्योतिष आचार्य अनिल पुरोहित की विश्लेषणात्मक समीक्षा*
 
,,
THE BIKANER NEWS:-बीकानेर,बीकानेर जिले के प्रख्यात ज्योतिष आचार्य अनिल पुरोहित ने दीपावली 2025 की तिथि निर्धारण को लेकर एक विस्तृत, शास्त्रानुसार और तार्किक विश्लेषण प्रस्तुत किया है। उन्होंने 20 अक्टूबर 2025 को कार्तिक कृष्ण अमावस्या के प्रदोष काल में लक्ष्मीपूजन और दीपावली उत्सव मनाने का ठोस आधार दिया है, जो पंचांग गणना, शास्त्रीय ग्रंथों, काशी विद्वत परिषद के निर्णय तथा अंकज्योतिष के सहायक तर्कों पर आधारित है। यह लेख उनके प्रदान किए गए तथ्यों का गहन अध्ययन और विश्लेषणात्मक समीक्षा प्रस्तुत करता है, जिसमें शास्त्र, परंपरा एवं आधुनिक पंचांगीय गणना का समन्वय स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है


*1. शास्त्रीय आधार:* अमावस्या तिथि का मर्म एवं प्रदोष काल
आचार्य पुरोहित ने स्पष्ट किया कि दीपावली का मूल आधार कार्तिक कृष्ण अमावस्या है, और इसका पूजन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद लगभग 2.5 घंटे) में होना चाहिए। शास्त्रों में उल्लिखित सूत्र है:  

*“यदा प्रदोषे अमावास्या, तदा लक्ष्मीपूजनम्”*
यह नियम *भविष्य पुराण* में वर्णित है, जहां संध्याकाल में लक्ष्मीपूजन और दीप प्रज्वलन का निर्देश दिया गया है। *पद्म पुराण* (उत्तरखंड, अध्याय 122) में भी अमावस्या रात्रि में दीपोत्सव और लक्ष्मी-जागरण का विस्तार से वर्णन है।  
**विश्लेषण**: यह सिद्धांत दीपावली के धार्मिक स्वरूप को परिभाषित करता है। प्रदोष काल में अमावस्या की उपस्थिति ही तिथि को प्रधान बनाती है, जो आध्यात्मिक ऊर्जा और समृद्धि के लिए अनुकूल मानी जाती है। आचार्य पुरोहित का यह तर्क शास्त्रों के साथ पूर्ण संनादति है।


 *2. पंचांग गणना:* 20 बनाम 21 अक्टूबर 2025 का तुलनात्मक विश्लेषण ज्योतिष आचार्य पुरोहित ने 2025 की अमावस्या तिथि की गणना इस प्रकार प्रस्तुत की:  
- **अमावस्या प्रारंभ**: 20 अक्टूबर 2025, दोपहर 15:44 (वास्तविक गणना में 15:46 के निकट)।  
- **अमावस्या समाप्ति**: 21 अक्टूबर 2025, शाम 17:54 (वास्तविक में 17:56 के आसपास)।  

प्रदोष काल (वाराणसी में सूर्यास्त लगभग 17:26 के बाद 18:15–20:15) में 20 अक्टूबर को अमावस्या पूर्ण रूप से विद्यमान है, जबकि 21 अक्टूबर को यह सूर्यास्त से पहले समाप्त हो जाती है।  
**निश्चित प्रधान तिथि का नियम**: शास्त्रों में यह स्थापित है कि तिथि प्रारंभ दिवस के प्रदोष में उपलब्ध होने पर वही प्रधान होता है (*धर्मसिन्धु* एवं *निर्णय सिंधु* के अनुसार)। नागपुर आचार्यों द्वारा प्रतिपादित 24-मिनट नियम भी यही कहता है: सूर्यास्त के बाद अमावस्या यदि 24 मिनट से अधिक रहे, तो उसी दिन पूजन। यहां 20 अक्टूबर को प्रदोष में कई घंटे उपलब्धता है।  
**विश्लेषण**: यह गणना तार्किक है और पंचांगीय भ्रम (सूर्योदय-मान के कारण) को दूर करती है। दोनों दिनों में अमावस्या का अंश होने से विवाद उत्पन्न हुआ, किंतु प्रथम प्रदोष नियम 20 अक्टूबर को श्रेष्ठ बनाता है।


*3. काशी विद्वत परिषद का निर्णय:* प्रामाणिकता का आधार
काशी विद्वत परिषद ने स्पष्ट घोषणा की है कि 20 अक्टूबर 2025 को ही दीपावली एवं लक्ष्मीपूजन होगा, जो “प्रथम प्रदोष-व्याप्ति” नियम पर आधारित है। यह निर्णय *पुरवाविधि* परंपरा का पालन करता है, जहां पूर्व दिवस का प्रदोष प्रधान माना जाता है।  
**विश्लेषण**: विद्वत परिषद का यह फैसला शास्त्रीय प्रामाणिकता प्रदान करता है और राष्ट्रीय स्तर पर एकरूपता लाता है। यह भ्रम को समाप्त करते हुए 20 अक्टूबर को आधिकारिक तिथि बनाता है, जो अधिकांश पंचांगों द्वारा समर्थित है।

---

*4. अंकज्योतिष एवं ग्रह स्थिति: सहायक शुभता का मूल्यांकन*

ज्योतिष आचार्य पुरोहित ने अंकज्योतिष को गौण तर्क के रूप में जोड़ा:  
- **20/10/2025**: 2+0+1+0+2+0+2+5 = 12 → 3 (बृहस्पति अंक: समृद्धि, धर्म एवं विस्तार का प्रतीक)।  
- **21/10/2025**: 2+1+1+0+2+0+2+5 = 13 → 4 (राहु अंक: स्थायित्व में बाधा का संकेत)।  

**विश्लेषण**: यद्यपि अंकज्योतिष मुख्य निर्णय का आधार नहीं, यह 20 अक्टूबर की शुभता को मजबूत करता है। बृहस्पति का प्रभाव दीपावली की समृद्धि-भावना से मेल खाता है, जो सहायक रूप से लोकप्रिय अपील प्रदान करता है।

 

 *5. शास्त्रीय दलीलें एवं ग्रंथ सन्दर्भ: गहन समीक्षा*
ज्योतिष आचार्य पुरोहित ने प्राथमिक ग्रंथों का हवाला दिया:  

*(A) पद्म पुराण (उत्तरखंड, अध्याय 122)*: नरक चतुर्दशी पर यमदीप, अमावस्या प्रातः पितृ-तर्पण, रात्रि दीपदान एवं लक्ष्मी-जागरण का वर्णन। उद्धरण: “अमावस्या के दिन... रात्रि में देव-मन्दिरों... में ‘प्रसन्न दीप’ प्रज्वलित करो।”  
*(B) भविष्य पुराण*: “संध्या-समय लक्ष्मी-पूजन करो और... दीप-पंक्तियों से आलोकित करो।”  
*(C) निर्णय परंपरा*: प्रदोष-व्याप्ति नियम में प्रथम प्रदोष को प्रधानता, विशेषतः 24-मिनट मार्गदर्शक से।  

**विश्लेषण*: ये सन्दर्भ अमावस्या रात्रि एवं प्रदोष की अनिवार्यता पर बल देते हैं। 2025 की स्थिति में 20 अक्टूबर का प्रथम प्रदोष पूर्ण अनुकूलता दर्शाता है, जो “पूर्वदिवस-प्रधान” स्थिति को शास्त्रसम्मत बनाता है।
*6. भ्रम के कारण एवं परंपरागत आचार:* व्यावहारिक समाधान
भ्रम का कारण अमावस्या का दोनों दिनों में फैलाव है, जिससे कुछ पंचांग 21 अक्टूबर को शीर्ष तिथि मानते हैं। किंतु लक्ष्मीपूजन प्रदोष-कर्म होने से 20 अक्टूबर प्रधान है। राष्ट्रीय मीडिया एवं विद्वत परिषद ने भी 20 को औपचारिक घोषित किया।  
**आचार क्रम**: