Property Rule: माता पिता की सेवा नहीं की तो नाम हुई संपत्ति हो जाएगी वापस
कानून की धारा 23 के अनुसार, यदि माता-पिता ने संपत्ति इस शर्त पर दी थी कि संतान उनकी देखभाल करेगी और वह इस कर्तव्य में विफल रहती है, तो संपत्ति का ट्रांसफर रद्द किया जा सकता है। इसके लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती। माता-पिता अपने क्षेत्र के उपखण्ड अधिकारी (SDM) के पास आवेदन देकर अपनी संपत्ति वापस मांग सकते हैं।
Property Rule: भारत में माता-पिता अपनी पूरी जिंदगी की कमाई को संतान के नाम कर देना अपना कर्तव्य और आत्मसंतोष मानते हैं। वे यह उमीद करते हैं कि वृद्धावस्था में बेटा-बेटी उनका सहारा बनेंगे, साथ निभाएंगे। लेकिन जब यही संतान उपेक्षा करने लगे, समानजनक व्यवहार तक न करे, तो स्वाभाविक है कि माता-पिता सोचे—क्या वे अपनी दी हुई संपत्ति वापस ले सकते हैं? जवाब है—हां। भारत सरकार ने 2007 में ‘वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम’ लागू किया।
इस कानून की धारा 23 के अनुसार, यदि माता-पिता ने संपत्ति इस शर्त पर दी थी कि संतान उनकी देखभाल करेगी और वह इस कर्तव्य में विफल रहती है, तो संपत्ति का ट्रांसफर रद्द किया जा सकता है। इसके लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती। माता-पिता अपने क्षेत्र के उपखण्ड अधिकारी (SDM) के पास आवेदन देकर अपनी संपत्ति वापस मांग सकते हैं।
यह जरूरी नहीं कि संपत्ति देने के समय कोई लिखित समझौता हो। यदि यह साबित हो जाए कि संपत्ति सेवा की अपेक्षा पर दी गई थी और अब उपेक्षा हो रही है, तो भी संपत्ति वापस ली जा सकती है। कोर्ट ने कई बार माना है कि व्यवहार और परिस्थिति भी महत्त्वपूर्ण हैं।
यह केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक मुद्दा भी है। जब संतान अपने दायित्व से मुंह मोड़ ले, तो समाज भले चुप रहे, लेकिन कानून अब माता-पिता के साथ है। उन्हें अधिकार है कि वे समानपूर्वक जीवन जीने के लिए अपनी संपत्ति वापस मांगें।