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81 साल के राजस्थानी ताऊ ने दिया मूंछों पर ताव- भारत पाकिस्तान युद्ध को लेकर कही दिल छू लेने वाली बात 

1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लेने वाले जोराराम बिश्नोई भी एक बार फिर युद्ध के मैदान में सेवा करने की बात कर रहे हैं। जोराराम बिश्नोई युद्ध के दौरान सेना को टैंकर और रसद की आपूर्ति करते थे। यह वही जोराराम बिश्नोई हैं, जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना के टैंकरों और वाहनों को छोड़ने के बाद उन्हें जोधपुर पहुंचाया था। 
 
कही दिल छू लेने वाली बात

Rajasthan News: पहलगाम हमले के बाद भारत की एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है। वहीँ आज सुबह सुबह भारत ने कई आंतकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया और आज शाम को यानि 7 तारीख को देशभर के कई राज्यों में यह मॉक ड्रिल आयोजित की जाएगी, जिसमें नागरिकों को युद्ध के दौरान किस तरह से व्यवहार करना है, इसका प्रशिक्षण दिया जाएगा।

पूर्व सैनिकों में दिखा उत्साह 

दूसरी ओर, देश के पूर्व सैनिकों में जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। युद्ध की परिस्थितियों में पूर्व सैनिक एक बार फिर युद्ध के मैदान में सेवा करने के लिए उत्सुक हैं।

1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लेने वाले जोराराम बिश्नोई भी एक बार फिर युद्ध के मैदान में सेवा करने की बात कर रहे हैं। जोराराम बिश्नोई युद्ध के दौरान सेना को टैंकर और रसद की आपूर्ति करते थे। यह वही जोराराम बिश्नोई हैं, जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना के टैंकरों और वाहनों को छोड़ने के बाद उन्हें जोधपुर पहुंचाया था। 


जोराराम बिश्नोई का अध्भुत योगदान 

जोधपुर के सालोड़ी गांव निवासी जोराराम बिश्नोई  का जन्म 13/11/1944 को जोधपुर के निकट सालोड़ी गांव में किसान चोखाराम के घर हुआ था। गांव में पोशाल में प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने चौथी कक्षा से आगे की पढ़ाई के लिए दरबार मिडिल स्कूल सरदारपुरा जोधपुर में प्रवेश लिया। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1958 में मालानी क्षेत्र में एक निजी स्कूल खोला।

इसी बीच 1962 में वे भारतीय सेना की 5002 एसी बटालियन में टीकेटीपीटीआर (टैंक ट्रांसपोर्ट) के पद पर भर्ती हुए और देश की सेवा की। 1962 में वे भारत-चीन युद्ध में प्रशिक्षणाधीन थे। 1965 के भारत-पाक युद्ध में आप अपनी बटालियन के साथ पंजाब में अग्रिम मोर्चे पर थे और खेमकरण, असल उत्तर व अन्य मोर्चों पर भारतीय टैंकों की आपूर्ति की तथा नष्ट हो चुके पाकिस्तानी पैटन टैंकों को पहुंचाया।

वहीँ दूसरी तरफ परमवीर चक्र अब्दुल हमीद 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में लगातार 13 दिनों तक लोंगेवाला, तन्नोट, घोटारू, किशनगढ़ मोर्चे पर अपनी ड्यूटी निभाते रहे। आपने लोंगेवाला में पाकिस्तान के नष्ट हो चुके टी-59 टैंकों को पहुंचाया, जिसमें से आपके द्वारा लाया गया एक पाकिस्तानी टैंक आज भी विजय की स्मृति के रूप में जोधपुर दरबार के सामने रखा हुआ है।