Rajasthan Khabar: राजस्थान में मवेशियों के दूध में बढी फ्लोराइड की मात्रा, रिसर्च में हुआ खुलासा
लोगों की सेहत हो रही खराब
Rajasthan Khabar: हाल के शोध में मवेशियों के दूध और सब्जियों में फ्लोराइड की मौजूदगी ने वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच चिंता बढ़ा दी है। यह अध्ययन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन द्वारा संयुक्त रूप से किया गया, जिसमें मवेशियों के चारे और मिट्टी में फ्लोराइड के उच्च स्तर को प्रमुख कारण बताया। इसमें 10 राज्यों के 50 नमूनों का विश्लेषण किया। बीकानेर और पंजाब के लुधियाना में फ्लोराइड का स्तर सबसे अधिक पाया गया। इन क्षेत्रों में भूजल में फ्लोराइड की मात्रा पहले से ही 2-3 मिलीग्राम प्रति लीटर है, जो मवेशियों और फसलों तक पहुंच रही है।
दूध में फ्लोराइड: अध्ययन में पाया गया कि राजस्थान, पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में गायों के दूध में फ्लोराइड का स्तर 0.8 से 1.2 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गया, जो सामान्य से दोगुना है।
सब्जियों पर असर: पालक, गोभी और मूली जैसी सब्जियों में फ्लोराइड की मात्रा 2-3 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम तक मापी गई, जो मिट्टी और सिंचाई जल से आ रही है।
क्या है जिम्मेदार: औद्योगिक प्रदूषण, फॉस्फेट उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग और भूजल में प्राकृतिक फ्लोराइड की उच्च सांद्रता इसके लिए जिम्मेदार।
स्वास्थ्य जोखिम: बच्चों में दांतों का फ्लोरोसिस और हड्डियों की कमजोरी जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं, खासकर जहां फ्लोराइड का स्तर 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक हो।
फ्लोरोसिस इकाई अजमेर जिला कॉर्डिनेटर जितेन्द्र हरचंदानी ने बताया किस्वा स्थ्य मंत्रालय से टीम ने ग्रामीण क्षेत्र में 6 साल तक के बच्चों की दांतों की जांच की जिसमें फ्लारोसिस रोग के लक्षण मिले हैं। टीम ने मवेशियों के पानी पीने के स्त्रोत, सिंचाई के पानी के नमूने लिए हैं।
बांका पट्टी पड़ा नाम:
अजमेर, डेगाना, मकराना के ग्रामीण क्षेत्र में फ्लोराइड प्रभावित क्षेत्र को बांकापट्टी नाम से जाना जाता है। इसमें फ्लोरोसिस रोग के चलते घुटने, कमर में टेडापन आ रहा है। यहां बीसलपुर, इंदिरा गांधी नहर के पानी की सप्लाई होने लगी है।
सरकार ने इस मुद्दे पर एक समिति गठित की है जो मई 2025 तक अपनी रिपोर्ट देगी। तब तक लोगों से सावधानी बरतने और स्थानीय जल स्रोतों की जांच करने की सलाह दी गई है। यह शोध खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संतुलन पर नए सवाल खड़े करता है। क्या हमारी थाली तक पहुंचने वाला भोजन अब सुरक्षित नहीं रहा?