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Rajasthan:-बैल से खेती करने वालो की बल्ले बल्ले,हर साल इतने रुपये खाते में डालेगी सरकार

 
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Rajasthan News:- आजकल खेती का पूरा काम ट्रैक्टर व अन्य आधुनिक यंत्रों से किया जाने लगा है। राजस्थान सरकार ने प्रदेश के लघु व सीमान्त कृषकों को बैलों से खेती करने पर प्रोत्साहन के लिए 30 हजार रुपए प्रति वर्ष देने की घोषणा की है। ऐसे में किसान फिर से खेतों में बैलों से भूमि की जुताई करते नजर आ सकते हैं। 

बैलों की गर्दन में बंधी घंटी से निकलने वाले मधुर स्वर भोर और सांझ की बेला में फिर से सुनाई दे सकते हैं। बहरहाल, जिस तेज गति से बैलों की संया घटी है, उससे यह आशंका गहराने लगी थी कि चंद वर्षों बाद किसानों का पालनहार समझा जाने वाला यह मूक प्राणी कहीं इतिहास की धुंध में न खो जाए, लेकिन राज्य सरकार की बजट घोषणा इस पहचान को जीवित रख सकेगी। 

पहले जब सांझ ढले किसान अपने खेतों से लौटते थे तो बैलों की हुंकार व गले में बंधी घंटियां बजती थीं। ऐसा प्रतीत होता था कि मानो कोई जंगल में संगीत के स्वर छेड़ रहा हो। आज काश्तकारों के घर बैलों के बिना सूने-सूने नजर आने लगे हैं।

अब कुछ गांवों में बची हैं जोडिय़ां

बुजुर्ग बताते हैं कि पहले गांवों में बड़ी तादाद में बैलों की जोडिय़ां नजर आया करती थीं। वहीं अब न केवल सपन्न बल्कि आम किसानों ने भी बैलों को पूरी तरह से त्याग दिया है। जिन लोगों के पास सिंचाई के आधुनिक यंत्र नहीं हैं, उन्होंने भी किराए पर इनका जुगाड़ कर समय की बचत की बात कहकर बैलों की जोडिय़ों से अपना मुंह मोड़ा था।

गोपालन को मिलेगा बढ़ावा

सरकार की इस घोषणा से खेती के पुराने युग की वापसी तो होगी ही। साथ ही, इससे गोपालन को बढ़ावा मिलने से गोवंश के दिन भी बदल जाएंगे। चारे के कारण बोझ समझ कर निराश्रित छोड़ दिए जाने वाले बछड़े, बैल बन कर खेती में सहयोगी बनेंगे। राशि भले ही छोटी है, लेकिन प्रधानमंत्री किसान समान निधि की तरह ही छोटी जोत वाले किसानों के लिए यह बड़ा सहारा बनेगी।

इनका कहना

कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक शंकरलाल मीणा ने बताया कि राजस्थान सरकार ने प्रदेश के पात्र लघु व सीमान्त कृषकों को बैलों से खेती करने पर प्रोत्साहन के लिए 30 हजार रुपए प्रति वर्ष देने की घोषणा की है। ऐसे में किसान फिर से खेतों में बैलों से भूमि की जुताई करते नजर आ सकते हैं। इसके लिए बैलों की बीमा (टैगिंग) एवं स्वास्थ्य प्रमाण पत्र जारी कर आवेदन करना होगा।

आजकल खेती का पूरा काम ट्रैक्टर व अन्य आधुनिक यंत्रों से किया जाने लगा है। राजस्थान सरकार ने प्रदेश के लघु व सीमान्त कृषकों को बैलों से खेती करने पर प्रोत्साहन के लिए 30 हजार रुपए प्रति वर्ष देने की घोषणा की है। ऐसे में किसान फिर से खेतों में बैलों से भूमि की जुताई करते नजर आ सकते हैं। 

बैलों की गर्दन में बंधी घंटी से निकलने वाले मधुर स्वर भोर और सांझ की बेला में फिर से सुनाई दे सकते हैं। बहरहाल, जिस तेज गति से बैलों की संया घटी है, उससे यह आशंका गहराने लगी थी कि चंद वर्षों बाद किसानों का पालनहार समझा जाने वाला यह मूक प्राणी कहीं इतिहास की धुंध में न खो जाए, लेकिन राज्य सरकार की बजट घोषणा इस पहचान को जीवित रख सकेगी। 

पहले जब सांझ ढले किसान अपने खेतों से लौटते थे तो बैलों की हुंकार व गले में बंधी घंटियां बजती थीं। ऐसा प्रतीत होता था कि मानो कोई जंगल में संगीत के स्वर छेड़ रहा हो। आज काश्तकारों के घर बैलों के बिना सूने-सूने नजर आने लगे हैं।

अब कुछ गांवों में बची हैं जोडिय़ां

बुजुर्ग बताते हैं कि पहले गांवों में बड़ी तादाद में बैलों की जोडिय़ां नजर आया करती थीं। वहीं अब न केवल सपन्न बल्कि आम किसानों ने भी बैलों को पूरी तरह से त्याग दिया है। जिन लोगों के पास सिंचाई के आधुनिक यंत्र नहीं हैं, उन्होंने भी किराए पर इनका जुगाड़ कर समय की बचत की बात कहकर बैलों की जोडिय़ों से अपना मुंह मोड़ा था।

गोपालन को मिलेगा बढ़ावा

सरकार की इस घोषणा से खेती के पुराने युग की वापसी तो होगी ही। साथ ही, इससे गोपालन को बढ़ावा मिलने से गोवंश के दिन भी बदल जाएंगे। चारे के कारण बोझ समझ कर निराश्रित छोड़ दिए जाने वाले बछड़े, बैल बन कर खेती में सहयोगी बनेंगे। राशि भले ही छोटी है, लेकिन प्रधानमंत्री किसान समान निधि की तरह ही छोटी जोत वाले किसानों के लिए यह बड़ा सहारा बनेगी।

इनका कहना

कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक शंकरलाल मीणा ने बताया कि राजस्थान सरकार ने प्रदेश के पात्र लघु व सीमान्त कृषकों को बैलों से खेती करने पर प्रोत्साहन के लिए 30 हजार रुपए प्रति वर्ष देने की घोषणा की है। ऐसे में किसान फिर से खेतों में बैलों से भूमि की जुताई करते नजर आ सकते हैं। इसके लिए बैलों की बीमा (टैगिंग) एवं स्वास्थ्य प्रमाण पत्र जारी कर आवेदन करना होगा।