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Rajasthan History : जानिए कौन था वह राजस्थानी वीर जिसने अकबर की अस्थियों को अग्नि दी?

गोकुला जाट ने की. गोकुला को औरंगजेब ने बंदी बना लिया और 1669 में इस शर्त पर छोड़ने की पेशकश की कि वह इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले. लेकिन गोकुला ने दृढ़ता से इस शर्त को ठुकरा दिया. इसके परिणामस्वरूप आगरा की कोतवाली के सामने उसे सार्वजनिक रूप से मौत के घाट उतार दिया गया. गोकुला का सिर धड़ से अलग कर दिया गया.Rajasthan History
 
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Rajasthan History : बता दे कि राजस्थान के भरतपुर जिले में जाट समुदाय ने औरंगजेब की कठोर नीतियों, जजिया कर और मुगल सेना के अत्याचारों से तंग आकर 1668 में विद्रोह का बिगुल बजा दिया. राजस्थान के इतिहास में एक से बढ़कर एक कई वीरों ने जन्म लिया है. वहीं इतिहासकारों के अनुसार ऐसे ही एक वीर ने मुगलों से लड़ने के लिए


इस आंदोलन की शुरुआत तिलपत गांव के वीर गोकुला जाट ने की. गोकुला को औरंगजेब ने बंदी बना लिया और 1669 में इस शर्त पर छोड़ने की पेशकश की कि वह इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले. लेकिन गोकुला ने दृढ़ता से इस शर्त को ठुकरा दिया. इसके परिणामस्वरूप आगरा की कोतवाली के सामने उसे सार्वजनिक रूप से मौत के घाट उतार दिया गया. गोकुला का सिर धड़ से अलग कर दिया गया.Rajasthan History


गोकुला की शहादत से आक्रोशित होकर सिनसिनी रियासत के राजाराम जाट और उनके साथी रामकी चाहर ने मुगलों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. दोनों ने अपनी सेना तैयार की और सबसे पहले गांव आऊ स्थित मुगल छावनी पर धावा बोला. छावनी में आग लगाई गई और अधिकारी लालबेग की हत्या कर दी गई.


इसके बाद राजाराम और रामकी चाहर ने धीरे-धीरे आगरा, मथुरा और भरतपुर के आसपास के इलाकों पर कब्जा करना शुरू किया. उन्होंने मुगलों की कर व्यवस्था को ध्वस्त कर स्वयं टैक्स वसूलना आरंभ कर दिया. उस समय औरंगजेब दक्खन में व्यस्त था. जब उसे कर की आमदनी बंद होने का समाचार मिला तो उसने अपने बेटे आजम और फिर पोते बीदर बख्त को जाटों पर चढ़ाई के लिए भेजा, लेकिन दोनों को राजाराम की सेना ने हरा दिया.Rajasthan History


इतिहासकारों के अनुसार 27 फरवरी 1688 को राजाराम और रामकी चाहर ने अपने योद्धाओं के साथ आगरा के सिकंदरा स्थित अकबर के मकबरे पर धावा बोला. उस समय यह मकबरा शहर से बाहर, आगरा-दिल्ली मार्ग पर स्थित था.


जाट सैनिकों ने न केवल मकबरे में तोड़फोड़ की बल्कि अकबर की कब्र को भी खोद डाला. वहां से हड्डियां निकालकर उन्हें आग के हवाले कर दिया. यह कार्य गोकुला की निर्मम हत्या का प्रतिशोध था और भारतीय इतिहास में बदला लेने का यह एक विलक्षण उदाहरण माना जाता है.


आखिरकार, 4 जुलाई 1688 को हुए एक युद्ध में राजाराम जाट वीरगति को प्राप्त हुए. लेकिन उनकी वीरता और विद्रोह की यह गाथा आज भी जाट समुदाय और राजस्थान के इतिहास में गर्व से याद की जाती है.Rajasthan History