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Rajasthan: राजस्थान के ये 30 गांव आज भी कर रहे है सिर्फ एक रोडवेज बस का इन्तजार, शिक्षा और रोजगार पर पड़ रहा है बुरा असर 

जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर दूर, कई गांव आज भी सड़क और परिवहन सुविधा के लिए तरस रहे हैं. ये केवल एक खबर नहीं, बल्कि उन लोगों की रोजमर्रा की जंग है, जो नया जिला बनने के बाद भी खुद को पिछड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं.

 
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Rajasthan News: कोटपूतली-बहरोड़, राजस्थान का नया-नवेला जिला. नाम में ही चमक है, उम्मीद है. लेकिन क्या ये उम्मीदें हर गांव तक पहुंची हैं?  कुछ गांवों में तो बस का हॉर्न तक नहीं बज रहा है. कोटपूतली जिले के कई गांव आज भी इस गाड़ी का इंतजार कर रहे हैं. नारायणपुर, ज्ञानपुरा, चतरपुरा, निमूचाना... ऐसे लगभग 30 गांव हैं, जो कोटपूतली जिला मुख्यालय से 15-20 किलोमीटर की दूरी पर हैं, लेकिन यहां कोई बस नहीं चलती. न सरकारी, न प्राइवेट.

इन गांवों के लोगों को अगर कहीं जाना हो— चाहे वो कोटपूतली हो, नारायणपुर हो, बानसूर हो या फिर अलवर और जयपुर— तो उन्हें पहले 7 से 16 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. सोचिए, जिनके पास बाइक नहीं है, उनके लिए ये रोज की कितनी बड़ी मशक्कत है. स्कूल-कॉलेज जाने वाले बच्चे, काम पर जाने वाले मजदूर, और खासकर महिलाएं व बुजुर्ग, सबके लिए यह एक बड़ी चुनौती है.

जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर दूर, कई गांव आज भी सड़क और परिवहन सुविधा के लिए तरस रहे हैं. ये केवल एक खबर नहीं, बल्कि उन लोगों की रोजमर्रा की जंग है, जो नया जिला बनने के बाद भी खुद को पिछड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं.

राजस्थान में नए जिलों के ऐलान के बाद उम्मीद की किरण जगी थी कि अब विकास की गाड़ी गांवों तक भी पहुंचेगी. लेकिन कोटपूतली जिले के कई गांव आज भी इस गाड़ी का इंतजार कर रहे हैं. नारायणपुर, ज्ञानपुरा, चतरपुरा, निमूचाना... ऐसे लगभग 30 गांव हैं, जो कोटपूतली जिला मुख्यालय से 15-20 किलोमीटर की दूरी पर हैं, लेकिन यहां कोई बस नहीं चलती. न सरकारी, न प्राइवेट.

कुछ साल पहले यहां एक मंत्री जी ने बस सेवा शुरू तो करवाई, लेकिन वो भी कुछ महीनों की मेहमान थी. तब से हालात जस के तस हैं. बुजुर्गों का कहना है, "यह हमारे क्षेत्र का सबसे पुराना और सीधा रास्ता है. हम सालों से मांग कर रहे हैं, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिलता है."

शिक्षा-स्वास्थ्य-रोजगार पर असर

परिवहन की कमी का सीधा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है. कई छात्र-छात्राएं स्कूल और कॉलेज सिर्फ इसलिए छोड़ देते हैं, क्योंकि आने-जाने का कोई साधन नहीं. बीमार पड़ने पर सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाते, और कई बार तो जान पर बन आती है. महिलाओं की सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा है. रात-बिरात अकेले पैदल चलना कितना खतरनाक हो सकता है, ये किसी से छिपा नहीं है. दिहाड़ी मजदूरों की तो आधी कमाई किराए में ही निकल जाती है, वो भी तब जब उन्हें बस मिले.

प्रशासन से बस सेवा शुरू करने की गुहार

गांव वालों की मांग बस एक ही है: एक रोडवेज बस चला दो. उनका मानना है कि इससे न सिर्फ उनकी रोज की मुश्किल हल होगी, बल्कि उनके गांव विकास की मुख्यधारा से जुड़ेंगे. जयपुर, दिल्ली, नीमराना और सीकर जैसे बड़े शहरों तक पहुंच आसान हो जाएगी. इससे पढ़ाई, इलाज और रोजगार के नए दरवाजे खुलेंगे.

इन सभी गांवों में नहीं चलती बस

नारायणपुर, ज्ञानपुरा, चतरपुरा, निमूचाना, कुण्डली, पाली-बुर्जा, बासदयाल, बासकरणावत, बास शेखावत, नृसिंह की ढाणी, तुराणा, लालपुरा, मांण्डली, सांथलपुर, छिलाड़ी, धोली कोठी, झगड़ेता कलां, बास गोवर्धन, नयाबास, बासनरबद, गढ़ी खरकड़ी, आड़ीगेली, चांदपुरी, लादुवास, नांगड़िवास, हॉसियावास, टमोरीवास और बालाका नांगल जैसे गांव जिला मुख्यालय से 15-20 किलोमीटर की दूरी में स्थित हैं, लेकिन यहां तक कोई रोडवेज बस या निजी यात्री वाहन नहीं चलता.