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राजस्थान का यह गांव ‘आमों वाला गांव’,के नाम से है प्रसिद्ध, हर साल कर लेता है इतना व्यापार 

यहां आम के सैकड़ों पेड़ न केवल इस गांव की हरियाली को सजाते है, बल्कि गांव की अर्थव्यवस्था और पहचान का भी आधार बने हुए है।गोमती नदी के किनारे बसे इस गांव में लगभग 300 घर है। Rajasthan News
 
राजस्थान का यह गांव ‘आमों वाला गांव’,के नाम से है प्रसिद्ध, हर साल कर लेता है इतना व्यापार 

Rajasthan News : अक्सर आप ने किसी भी  गांव को उसकी प्रसिद्धि के लिए सुना होगा , आज हम आपको एक ऐसे ही गांव के बारे में बताना चाह रहे है जो राजस्थान का है और इसे लोग आम्बों वाला गांव भी कहते है।  बता दे की सलूम्बर में सराड़ा उपखंड में स्थित बड़ागांव अपनी एक अनोखी पहचान के लिए चर्चा में है। ऐतिहासिक विरासत या किसी प्रमुख घटना के बजाय यह गांव ‘आम के पेड़ों वाले गांव’ के नाम से प्रसिद्ध हो रहा है।


गांव में 300 घर है 
अधिक जानकरी के लिए बता दे की  यहां आम के सैकड़ों पेड़ न केवल इस गांव की हरियाली को सजाते है, बल्कि गांव की अर्थव्यवस्था और पहचान का भी आधार बने हुए है।गोमती नदी के किनारे बसे इस गांव में लगभग 300 घर है। Rajasthan News

हजारों की संख्या में पेड़ मौजूद 

 एक आम का पेड़ करीब दस पीढ़ियों तक फल देता है। वर्तमान में गांव में 1000 से अधिक आम के पेड़ मौजूद है। ग्रामीण नरेंद्र पटेल ने बताया कि यह केवल पेड़ नहीं है, यह हमारी विरासत है। बता दें कि यहां के लोग पेड़ों को बच्चों की तरह पालते है, इन्हें न काटते है और ना ही पत्थर मारते है।गांव के लगभग हर घर के आसपास आम के पेड़ दिखाई देते है। ग्रामीणों ने बताया कि यह परंपरा उनके पूर्वजों से चली आ रही है, जिन्होंने बड़ी संख्या में आम के पेड़ लगाए थे। Rajasthan News

ट्रकों में भर भर जाते है रशीले आम 
गांव में करीब 1000 से ज्यादा आम के पेड़ है। पहले यहां से हर साल 50 से ज्यादा ट्रक आम निकला करते थे, जिससे गांव में रोजगार और आमदनी दोनों का संबल था। लेकिन अब यह संख्या धीरे-धीरे घट रही है। ग्रामीणों का कहना है कि गोमती नदी में हो रहे अवैध खनन से जलस्तर लगातार गिर रहा है। पेड़ों की जड़े सूख रही है और आम की पैदावार में कमी आ रही है।Rajasthan News


पेड़ों की करते है रक्षा 

गांव के कालूलाल मीणा ने बताया कि हमारे यहां लोग आम के पेड़ को बहुत आदर से देखते है। कोई फल गिराने के लिए पत्थर नहीं फेंकता। अगर कोई फल नीचे गिरा है, तो उठा लेंगे, लेकिन पेड़ को नुकसान नहीं पहुंचाते है। ऐसे ही शुरू से ही गांव में संरक्षित किया जा रहा है।Rajasthan News