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एक संत की लिखी अद्भुत वसीयत -: टूट गए बिक्री के रिकॉर्ड,पढ़े
स्वामी रामसुखदास जी महाराज पर विशेष आलेख

 
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धर्म:-

मनोज चांडक "नायाब" की कलम से ...

दुनियां में जब भी कोई वसीयत लिखी जाती है या वसीयत का ज़िक्र भी होता है तो सबसे पहले ज़ेहन में धन संपत्ति के बंटवारे की बात आती है मगर एक वसीयत दुनियां में ऐसी भी हुई है जिसको लिखने वाले के पास 1 रुपये की भी संपत्ति न हो कोई ज़मीन जायदाद नहीं हो कोई बैंक बैलेंस न हो कोई कोठी बंगला खेत या घर न हो और फिर भी उसने वसीयत लिखी हो है न आश्चर्य की बात ऐसी ही एक अद्भुत वसीयत लिखी गई थी कुछ वर्ष पूर्व और उस वसीयत की 8 लाख से भी अधिक प्रतियां बिक जाए जिनकी वसीयत को 40 बार पुनर्मुद्रित करना पड़ा जिनकी वसीयत का बहुत से भाषाओं में अनुवाद किया गया हो ऐसी अद्भुत और दिव्य वसीयत दुनियां में शायद ही किसी व्यक्ति की रही हो जिनकी वसीयत की प्रति को संग्रहालय में संग्रहित कर रखी हो सोच कर देखिए वह व्यक्ति कितना बिरला और असाधारण होगा । आखिर कौन था वह व्यक्ति और ऐसा भी क्या था उस वसीयत में जिसके कारण वह दुनियां की सबसे दुर्लभ और अद्भुद वसीयत बन गई है । जी हां वह थे इस कलयुग के *असाधारण अद्वितीय अद्भुत संत स्वामी श्री रामसुख दास जी महाराज ।* उनकी वसीयत के कुल जमा 7-8  बिंदु उनकी महान सोच निर्मल, निर्विकार, निस्वार्थ भावना  को तथा पाखंड मान बड़ाई जय जयकार की लालसा से दूर तथा मानव मात्र के कल्याण की भावना को स्पष्ट तौर पर दर्शाता है इन बिंदुओं को पढ़ने मात्र से उनके पूरे व्यक्तित्व का परिचय मिल जाता है । *उनकी वसीयत कुछ इस तरह से थी -:*
1.  जिस प्रकार जीवित अवस्था में मैंने दंडवत प्रणाम चरण स्पर्श जय जयकार माल्यार्पण को निषेध किया इस शरीर को त्यागने के पश्चात भी इन सबका निषेध किया जाए ।

2. जिस प्रकार जीवित अवस्था में मेरे नाम से न तो कोई मठ है न कोई आश्रम है न ही कोई मेरे नाम पर पाठशाला गौशाला इत्यादि है न ही मेरे प्रवचन आदि के लिए कोई चंदा आदि इकट्ठा किया इस देह को त्यागने के पश्चात भी इसका पालन किया जाए ।

3. न तो मेरा कोई शिष्य है न ही कोई प्रचारक है न ही कोई उत्तराधिकारी था न होगा ।

4. इस देह को त्यागने के पश्चात मेरे लिए किसी भी तरह का भोज अथवा वार्षिक उत्सव न किया जाए ।

5. इस देह को त्यागने के पश्चात अंतिम संस्कार हेतु बैकुंठी अर्थी आदि न हो एक झोली में ले जाकर इस देह को गंगा के समीप अंतिम क्रिया सम्पन्न कर दी जाए । यदि गंगा न हो तो जहां गायों का  विचरण होता हो वहाँ अंतिम  संस्कार कर दिया जाए ।

6. मेरे देह की एवम उसकी अंतिम संस्कार की कोई तस्वीर अथवा छाया चित्र न लिया जाए । यदि कोई ऐसा करता है तो उसे रोका जाए । ज्ञात हो कि स्वामीजी ने पूरे जीवन काल लगभग 102 वर्ष में कभी भी अपनी फोटो नहीं खींचने दी क्योंकि उनका मानना था कि लोग भगवान के स्थान पर उनकी पूजा करने लगेंगे  । 

7. सभी सामग्री जैसे कलम कपड़े खड़ाऊ जूते वस्त्र इत्यादि को चिता के समीप जला दिया जाए ताकि उन वस्तुओं की कोई पूजा इत्यादि न कर पाएं । जिस स्थान पर अंतिम संस्कार किया है वहां कोई स्मारक इत्यादि न बनाया जाए । (उनका मानना था पूजा सिर्फ भगवान की हो मनुष्य की नहीं) 

8 व्यावसायिक सामग्री दुकान कैलेंडर आदि में जहां विज्ञापन से धनोपार्जन किया जाता हो वहां अपना नाम तक छापने को निषेध करता हूँ ।
       उनकी हस्तलिखित वसीयत की प्रतिलिपि आनंदाश्रम रानी बाज़ार बीकानेर, राजस्थान में संरक्षित है । उनकी वसीयत को स्वामी जी के आदेश पर देहरादून के श्री राजेन्द्र कुमार जी धवन ने लिखा है और उस पर स्वामी जी के हस्ताक्षर भी है  । स्वामीजी की वसीयत पर साक्षी के तौर पर  इन 5 लोगों के हस्ताक्षर भी है 1 . सिंहस्थ पीठाधीश्वर श्री क्षमा राम जी महाराज, सींथल 2. श्री नवलराम जी महाराज , आनंदाश्रम रानी बाजार बीकानेर 3 श्री बृज रतन जी डागा भीनासर 4 श्री रामनिवास जी महाराज लाडनू 5. श्री शिव किसन जी राठी, बीकानेर ।
मैंने अपने अल्प ज्ञान से जो कुछ लिखा है वह मेरे लिए सौभाग्य की बात है अन्यथा मेरे ज्ञान बुद्धि में इतना सामर्थ्य नहीं कि इतने महान संत पर कुछ लिख सकूं । इस दौर में जहां अधिकाधिक संत मान बड़ाई को आतुर रहते हैं जिनके बड़े बड़े मठ और आश्रम है वहां इस युग में *ऐसे अद्भुत संत को न सिर्फ मैंने प्रत्यक्ष देखा है सुना है बल्कि उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने का सौभाग्य भी प्राप्त किया है वह दिन मेरे लिए अविस्मरणीय दिन था कोई प्रभु की कृपा ही थी कि मैं उस दिन ऋषिकेश में उपस्थित था और स्वामीजी की जलती हुई चिता के दिव्य ताप ने मेरी देह को धन्य कर दिया*  ।*आज के युग में  स्वामी राम सुख दास जी महाराज जैसे संत बड़े और गहरे शोध का विषय है ।