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बीकानेर

एट्री ने राजस्थान में घास के मैदान और रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तंत्र कार्यशाला में भारत के ओपन नेचुरल इकोसिस्टम पर श्वेत पत्र जारी किया

THE BIKANER NEWS:
बीकानेर, राजस्थान– अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट (एट्री) ने महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, राजकीय डूंगर महाविद्यालय और राजस्थान वन विभाग के सहयोग से भारत के घास के मैदान और रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तंत्र पर दो दिवसीय कार्यशाला का सफलतापूर्वक आयोजन किया। इस कार्यशाला में राजस्थान के संदर्भ में इन अक्सर उपेक्षित पारिस्थितिकी तंत्रों के महत्व को उजागर किया गया।
कार्यक्रम का उद्घाटन महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने किया। उन्होंने एट्री, बेंगलुरु द्वारा तैयार भारत के ओपन नेचुरल इकोसिस्टम पर श्वेत पत्र जारी किया। यह श्वेत पत्र एक महत्वपूर्ण नीति दस्तावेज है, जो वर्तमान वैज्ञानिक समझ, प्रबंधन विधियों और नीति निर्माण का सार प्रस्तुत करता है। यह दस्तावेज घास के मैदानों की जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने और स्थानीय आजीविका को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
कार्यशाला में मुख्य वक्ताओं के रूप में एमडीएस विश्वविद्यालय, अजमेर के डॉ. विवेक शर्मा और अल्जेब्रा कॉलेज, कोटा के डॉ. के.एस. नामा शामिल थे। डॉ. शर्मा ने घास के मैदानों के पक्षियों पर व्याख्यान दिया और जैव ध्वनिकी तकनीकों के उपयोग को उजागर किया, जो पारिस्थितिकी निगरानी में सहायक है। डॉ. नामा ने घास और शुष्क भूमि पौधों के वर्गीकरण पर गहन चर्चा की, जिससे प्रतिभागियों को राजस्थान की स्थानीय वनस्पतियों की बेहतर समझ मिली। उनके विचारों ने इन महत्वपूर्ण परिदृश्यों की जैव विविधता और पारिस्थितिकीय बदलाव को समझने के लिए आधार प्रदान किया।
महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. ए.के. छंगाणी और डूंगर कॉलेज के प्राणी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. प्रताप कटारिया ने राजस्थान के शुष्क भूमि पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण महत्व और उनसे जुड़े खतरों पर चर्चा की। एट्री के परियोजना प्रबंधक डॉ. करणी सिंह बिठू ने ओरण और गौचर क्षेत्रों में चल रहे संरक्षण प्रयासों की जानकारी दी, जो राजस्थान में पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में अहम हैं। वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट के डॉ. चेतन मिश्र ने थार रेगिस्तान की जीव विविधता पर आक्रामक प्रजातियों के प्रभाव और इसके दीर्घकालिक पारिस्थितिकीय परिणामों पर प्रकाश डाला।
कार्यशाला के समापन सत्र में उप वन संरक्षक (वन्यजीव), बीकानेर, श्री संदीप छालानी ने मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिया। उन्होंने राजस्थान वन विभाग द्वारा घास के मैदानों की पुनर्स्थापना के लिए किए जा रहे प्रयासों पर चर्चा की और इन महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों और नवीन दृष्टिकोणों की आवश्यकता पर जोर दिया।
कार्यशाला का आयोजन एट्री के डॉ. करणी सिंह बिठू, व महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय डॉ. प्रभु दान चारण के नेतृत्व में शुभम कलवानी, खुशबू सिंगला ने किया। इस कार्यक्रम से विभिन्न प्राकृतिक विज्ञान पृष्ठभूमि के लगभग 100 छात्रों को लाभ हुआ। अन्य विशिष्ट प्रतिभागियों में फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी, बीकानेर की डिंपल कुमारी, डॉ. अनिल कुमार दुलार, डॉ. लीला कौर और डॉ. गौतम मेघवंशी सहित विभिन्न विभागों के अतिथि शिक्षक शामिल थे।
कार्यशाला का समापन घास के मैदानों को “बंजर भूमि” के रूप में देखने की पुरानी धारणा को बदलने के आह्वान के साथ हुआ। प्रतिभागियों ने इन पारिस्थितिक तंत्रों को जैव विविधता, जलवायु लचीलापन और सतत आजीविका के लिए अनमोल मानते हुए विज्ञान-आधारित संरक्षण प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

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